योगी के गढ़ में पहली बार कौन बना था सांसद, 19 चुनावों में 10 बार रहा ‘मंदिर’ का कब्‍जा


रतन गुप्ता उप संपादक

जब पूर्वांचल का नाम आता है, तो कई शहर जेहन में आने लगते हैं, लेकिन पूर्वांचल की एक धुरी है गोरखपुर और यहां का गुरु गोरक्षनाथ मंदिर. इसे लोगों की आस्‍था के केंद्र के साथ साथ सामाजिक सरोकार और सियासत का अहम केंद्र भी माना जाता है. फिलहाल इसी मठ के महंत हैं यूपी के सीएम योगी आदित्‍यनाथ. इन दिनों लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गईं हैं. गोरखपुर लोकसभा सीट को पूर्वांचल की हाईप्रोफाइल सीटों में गिना जाता है. इस सीट पर लोकसभा चुनावों का इतिहास भी काफी दिलचस्‍प रहा है. इस सीट पर आजादी से अबतक 19 बार चुनाव हुए, जिसमें अब तक 10 बार गोरखनाथ मंदिर का कब्‍जा रहा है.

कौन बना था पहला सांसद
देश की आजादी के बाद वर्ष 1951-52 में जब लोकसभा चुनाव हुए, तब गोरखपुर जिले की स्‍थिति की कुछ और थी. गोरखपुर व उसके आस पास के जिलों को मिलाकर कुल चार सांसद चुने जाते थे. वर्तमान में जो गोरखपुर लोकसभा सीट है, उसे गोरखपुर दक्षिण सीट के नाम से जाना जाता था. पहले लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस प्रत्‍याशी सिंहासन सिंह को जीत मिली थी. वह लगातार तीन बार गोरखपुर सीट से सांसद रहे. पहले आम चुनाव में भी गोरक्षपीठ के पीठाधीश्‍वर मंहत दिग्‍विजयनाथ चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन हार का सामना करना पड़ा. 1957 के चुनाव में दिग्विजयनाथ चुनाव से दूर रहे.

दिलचस्‍प हुआ मुकाबला
वर्ष 1962 का लोकसभा चुनाव काफी दिलचस्‍प रहा. इस बार गोरखपुर इकलौती लोकसभा सीट हो चुकी थी. इस चुनाव में गोरक्षपीठ के पीठाधीश्‍वर मंहत दिग्‍विजयनाथ ने हिन्‍दू महासभा के टिकट पर ताल ठोक दी, हालांकि वह चुनाव नहीं जीत पाए, लेकिन एक अलग सियासी चर्चा शुरू हो गई. जिसका असर 1967 के चुनाव में देखने को मिला. इस चुनाव में महंत दिग्‍विजयनाथ निर्दल उम्‍मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे और कांग्रेस के प्रत्‍याशी को पटखनी देते हुए विजयश्री हासिल कर ली. इस चुनाव में उन्‍हें 42 हजार वोटों से जीत मिली, हालांकि सांसद बनने के दो साल बाद ही वह ब्रह्मलीन हो गए. अब बारी उपचुनाव की थी. वर्ष 1969-70 के उपचुनाव में गोरक्षनाथ मठ के महंत दिग्‍विजयनाथ के उत्‍तराधिकारी महंत अवैद्यनाथ ने निर्दल पर्चा भरा और चुनाव जीत गए. इस सीट पर एक बार दोबारा मठ का परचम लहराया, लेकिन इसके अगले चुनाव में वर्ष 1971 में कांग्रेस ने यह सीट फिर से कब्‍जे में कर ली. इस बार यहां से कांग्रेस के नरसिंह नारायण पांडेय ने जीत हासिल की और निर्दलीय महंत अवैद्यनाथ को इस चुनाव में हार मिली.

इमरजेंसी के बाद का चुनाव
अब अगला लोकसभा चुनाव आया वर्ष 1977 का. यह चुनाव था इमरजेंसी के बाद का. इस चुनाव में भारतीय लोक दल से हरिकेश बहादुर और कांग्रेस के नरसिंह नारायण पांडेय के बीच मुकाबला हुआ. इस चुनाव में महंत अवैद्यनाथ मैदान में नहीं उतरे. इस चुनाव में हरिकेश बहादुर चुनाव जीत गए, लेकिन वर्ष 1980 के चुनाव से पहले हरिकेश बहादुर कांग्रेस में शामिल हो गए और इस चुनाव में भी वह सांसद चुने गए. इधर, मीनाक्षीपुरम में हिन्‍दूओं की धर्मांतरण की घटना से दुखी होकर महंत अवैद्यनाथ ने सक्रिय राजनीति से संन्‍यास लेने की घोषणा कर दी. अब दौर आया 1984 के चुनाव का. इस लोकसभा चुनाव से पहले हरिकेश लोकदल में शामिल हो गए, लेकिन इस बार वह चुनाव नहीं जीत पाए. यहां से कांग्रेस के मदन पांडेय जीतकर सांसद बन गए.

अवैद्यनाथ ने राजनीति में वापसी
वर्ष 1989 का चुनाव राम मंदिर के दौर में था. इस दौरान गोरक्षनाथ पीठ के महंत अवैद्यनाथ ने राजनीति में वापसी की और हिन्‍दू महासभा के टिकट पर दूसरी बार सांसद बने. 1989 के चुनाव में उनका मुकाबला वीपी सिंह के करीबी माने जाने वाले रामपाल सिंह से था. रामपाल को जनता दल और भाजपा ने संयुक्‍त उम्‍मीदवार बनाया था. वर्ष 1991 के चुनाव में महंत अवैद्यनाथ बीजेपी में शामिल हो गए. इस बार भी वह सांसद बनने में कामयाब रहे. 1996 के चुनाव में भी बीजेपी ने उन्‍हें उम्‍मीदवार बनाया और वह विजयी हुए.

1998 में योगी की एंट्री
वर्ष 1998 के चुनाव में उन्‍होंने अपने उत्‍तराधिकारी योगी आदित्‍यनाथ को पहली बार चुनाव में उतारा और वह बीजेपी के टिकट पर पहली बार सांसद बने. इसके बाद योगी आदित्‍यनाथ 1999, 2004, 2009 और 2014 में लगातार पांच बार गोरखपुर से सांसद निर्वाचित होते रहे. वर्ष 2017 में यूपी का सीएम बनने के कारण उन्‍हें सांसद पद से इस्‍तीफा देना पडा. इसके बाद हुए वर्ष 2018 के उपचुनाव में बीजेपी के प्रत्‍याशी को यहां हार का सामना करना पडा इस सीट से सपा के प्रवीण निषाद को जीत हासिल हुई लेकिन वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा ने यहां से भोजपुरी अभिनेता रविकिशन को प्रत्‍याशी बनाया जिसके बाद यह सीट फिर बीजेपी के खाते में चली गई. अब इस चुनाव में भी भाजपा ने रविकिशन को ही पार्टी ने उम्‍मीदवार बनाया है. इस तरह पिछले 65 सालों में लगभग 32 साल तक इस सीट पर मठ का ही दबदबा रहा है.

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