रतन गुप्ता उप संपादक
नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने दावा किया है कि नेपाली जनमत में यह विचार बढ़ रहा है कि हमारा ध्यान हमारी प्रकृति, पर्यावरण, मान्यता और स्थायी स्थिर संस्थाओं पर केंद्रित होना चाहिए। नया साल हमें देश से प्यार करने वाले और देशवासियों का भला चाहने वाले सभी लोगों के साथ मिलकर ऐसी सोच और समझ पैदा करने की प्रेरणा दे।’
उन्होंने यह भी कहा कि नेपाल के हालिया इतिहास में विधि, प्रणाली, शब्द और स्वरूप चाहे कितना भी बदल गया हो, गुणवत्ता और अर्थ में कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं हुआ है। आज आम नेपाली इस मुद्दे को लेकर चिंतित हैं। न तो देश का गौरव और सम्मान बढ़ा, न ही देशवासियों की सुख-समृद्धि में समयानुकूल सुधार हुआ। उन्होंने कहा, ”पुराने जानने-समझने वाले लोग तो अतीत को याद कर कष्ट सहते नजर आते हैं, लेकिन नई युवा पीढ़ी देश में अपना स्वर्णिम भविष्य देखे बिना भटक रही है।”
शाह ने कहा कि उन्नत राजनीतिक कानून उच्चतम उपलब्धियां और आशा पैदा करने में सक्षम होना चाहिए। शाह जोर देकर कहते हैं, “लेकिन हमारी अपनी आशाएं, आकांक्षाएं और विश्वास अस्थिर स्थिति के कारण परेशान हो रहे हैं, जहां हम दाएं या बाएं कहीं भी जा रहे हैं, एक निश्चित गंतव्य और गति बनाए रखने में असमर्थ हैं।” उन्होंने इसे राष्ट्रीय चिंता का विषय बताते हुए कहा कि अब हर चीज की समीक्षा जरूरी है. 2080 में शाह ने बार-बार बयानों के जरिए मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर की थी.