रतन गुप्ता उप संपादक
नेपाल में राजनीतिक विश्लेषक सीकेलाल ने कहा है कि तराई मधेश में रहनेवाले नागरिकों की भाषा, संस्कृति और संस्कार भारत के साथ मिलता जुलता है, इसीलिए उनको भारतीय नस्ल होने का आरोप लग जाता है । लेकिन इसके प्रति कोई भी चिन्ता ना करने के लिए भी उन्होंने आग्रह किया है । राष्ट्रीय मुक्ति क्रान्ति के संयोजक राजेन्द्र महतो द्वारा लिखित पुस्तक ‘अधुरा क्रान्ति’ विमोचन समारोह को बुधबार सम्बोधन करते हुए उन्होंने ऐसा कहा है ।
कार्यक्रम को सम्बोधन करते हुए विश्लेषक सीकेलाल ने कहा कि नेपाल में जितने भी मधेश केन्द्रीत आन्दोलन हुआ है, उसको भारत के साथ जोड़कर देखा गया और आन्दोलनकारियों को भारतीय होने का आरोप लगाया गया । उन्होंने कहा– ‘तराई–मधेश में रहनेवाले नागरिकों की भाषा, संस्कृति और संस्कार भारतीय नागरिकों के साथ समान है । यदि कोई नेपाल में रहनेवाले मधेशियों में भारतीय नस्ल होने का आरोप लगाता है तो इसमें चिन्ता ना करें, सत्य यही है, इसको स्वीकार करें ।’
सीकेलाल ने कहा कि कि मधेश आन्दोलन को भारत के साथ जोड़ कर देखने के कारण भी आन्दोलन कमजोर बन गया है । उनका मानना है कि मधेशी नेपाल के लिए स्थायी अल्पसंख्यक नागरिक है, यहां के शासकों ने ऐसा बनाया है । विश्लेषक सीकेलाल ने यह भी कहा कि आन्दोलन और क्रान्ति निरन्तर चलनेवाला प्रक्रिया भी है । उन्होंने आगे कहा– ‘कोई भी आन्दोलन पूर्ण नहीं होता है । आन्दोलन और क्रान्ति एक ऊर्जा है, प्रक्रिया है, जो निरन्तर जारी रहता है ।’ इसीलिए ‘अधुरा क्रान्ति’ शब्द पर असन्तुष्टि जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि पुस्तक में मधेश मुद्दा से अधिक लेखक राजेन्द्र महतो की व्यक्तिगत जीवन ज्यादा हाबी है ।
इसीतरह उन्होंने यह भी कहा कि वि.सं. २०७२ साल में हुई नाकाबन्दी की नैतिक दायित्व मधेशवादी पार्टी और मधेशी जनता ने ली है, इसीलिए इसको भारतीय नाकाबन्दी के रुप में प्रचारित करना ठीक नहीं है । उन्होंने आगे कहा– ‘यह नाकाबन्दी मधेशियों का था, हजारों लाखों मधेशी नागरिक नाके पर बैठ गए थे । उन्होंने ने ही इसका नैतिक दायित्व भी लिया है । जिन्होंने आन्दोलन का नैतिक दायित्व लिया है, नाकाबंदी उनका ही है, भारतका नहीं ।’