नई दिल्ली
केंद्र सरकार ने केंद्रीय सेवाओ में ओबीसी जातियों को मिल रहे आरक्षण को कैटैगराईजेशन के लिए एक कमीशन बनाने का फैसला किया है. सरकार ने इस कमीशन को बकायदा कैबिनेट की मंजूरी दे दी है. कमीशन ओबीसी कोटे में कोटा की संभवना पर स्टडी करेगा. अन्य पिछड़ी जातियों को मंडल कमीशन कि रिपोर्ट के आधार पर दो दशक पहले सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण दिया गया. हालांकि हाल ही में आरटीआई के जरिए केन्द्र से जानकारी मिली कि 1 जनवरी 2015 तक केन्द्रीय कर्मचारियों में महज 12 फीसदी लोग अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) से आते हैं.
आंकड़ों के मुताबिक केन्द्र सरकार ने ग्रुप ए, बी, सी और डी श्रेडी में मिलाकर 79,483 पद हैं और इनमें महज 9,040 कर्मचारी अन्य पिछड़ी जातियों से आते है. वहीं केन्द्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग के आंकड़ों के मुताबिक इसके मंत्रालय में 12.91 फीसदी दलित, 4 फीसदी जनजाति और 6.7 फीसदी ओबीसी कर्मचारी हैं जिन्हें मंडल के तहत आरक्षण का लाभ मिला है. मंत्रालय में कुल कर्मचारियों की संख्या 6,879 है. इन आंकड़ों से एक बात साफ है कि केन्द्र सरकार द्वारा अन्य पिछड़ी जातियों के लिए आवंटित अधिकांश नौकरियों में ओबीसी कैटेगरी के लोगों को भरा जाना बाकी है. इससे सवाल उठता है कि क्या 1990 के दशक में आया मंडल कमीशन इन दो दशकों के दौरान अन्य पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरी में जगह दिलाने में विफल रहा है? मंडल कमीशन की सिफारियों पर आरोप यह भी मढ़ा जाता है उसके प्रावधानों का फायदा पिछड़ी जातियों में आर्थिक तौर पर मजबूत लोगों को मिलता रहा जिसके चलते महज कुछ जातियों को सरकारी नौकरी में जगह मिली वहीं ज्यादातर पिछड़ी जातियां मंडल के तहत आरक्षण का फायदा उठाने में विफल रही है.
गौरतलब है सरकारी नौकरी में अन्य पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के लिए मंडल कमीशन ने 1980 में अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंपी थी. यह रिपोर्ट जनवरी 1979 में मोराजी देसाई सरकार द्वारा बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल को दूसरी पिछड़ी जाति के कमीशन का प्रमुख बनाने के बाद तैयार की गई. लेकिन मंडल रिपोर्ट सरकारी फाइलों में अगस्त 1990 तक दबी रही जिसके बाद केन्द्र में वीपी सिंह सरकार ने इसे अगस्त में लागू किया. हालांकि मंडल कमीशन की रिपोर्ट से पहले 1953 में काका कालेकर को पहले पिछड़ी जाति आयोग का चेयरमैन बनाया गया. काका कालेकर ने 1955 में 2,399 जातियों को पिछड़ी जातियों में शामिल करते हुए 837 जातियों को अति पिछड़ा घोषित किया और उन्हें आरक्षण देने की सिफारिश की. लेकिन कालेकर की इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया गया.
1990 में मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद भी सरकार समय-समय पर इसमे सुधार करने की कवायद करती रही है. 2015 में मोदी सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग की जगह नैशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस (एनसीबीसी) की नींव रखी जिसे पिछड़े वर्ग में मौजूद सभी जातियों तक आरक्षण का लाभ पहुंचाने के लिए खाका तैयार करने के लिए कहा गया. इन्हीं कोशिशों के चलते केन्द्र सरकार ने पिछड़ी जातियों में क्रीमी लेयर की पहचान करने के मापदंड को 6 लाख रुपये प्रति वर्षिक आय से बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर दिया.
इसके साथ ही केन्द्र सरकार ने अब एनसीबीसी के अन्य प्रस्ताव पर काम करने के लिए नए आयोग के गठन का ऐलान किया है. गौरतलब है कि एनसीबीसी ने पिछड़ी जातियों में सब-कैटेगराइजेशन की सिफारिश की है जिसके तहत पिछड़ी जातियों को 3 अलग-अलग कैटेगरी में बांटने की योजना है. लिहाजा इस कदम से सरकार की कवायद कोटे में कोटा देने की है जिससे आरक्षण का लाभ का अवसर सभी पिछड़ी जातियों को मिल सके.
दरअसल ओबीसी अरक्षण पर कुछ ओबीसी जातियां आरक्षण का फायदा उठा रही है. सरकार के पास ऐसी शिकायतें लंबे समय से आ रही है कि ओबीसी आरक्षण के लाभ कुछ जातियों को ही मिल रहा है. इसी मद्देनजर सरकार ने कमीशन बनाने का फैसला किया है, जिसके तहत ये कमीशन ओबीसी आरक्षण का स्टडी करेगा. इतना ही नहीं ये कमीशन उस रास्ते को भी तलाश करेगा जिससे की ओबीसी आरक्षण के कोटे में कोटा संभावना हो सके. कमीशन अगर कोटे में कोटा बनाने की संभावना पर रिपोर्ट देता है तो निश्चित रूप से ओबीसी आरक्षण पर कुछ जातियों का वर्चस्व खत्म होगा और ओबीसी की बाकी जातियां भी इसका फायदा उठा पाएंगी.
मंडल कमीशन की नीतियों के लागू होने के बाद 27 फीसदी ओबीसी के लिए आरक्षण निर्धारित है. ऐसे में अगर कोटे में कोटा होता है तो जो जातियां अभी इसका फायदा ज्यादा उठा रही हैं उनके लिए एक सीमित कोटा निर्धारित हो जाएगा. इसके बाद बाकी हिस्से को बाकी ओबीसी समाज के लिए फिक्स कर दिया जाएगा. नीतीश सरकार ने भी बिहार में दलित आरक्षण में कोटे में काटा बनाया था. जिसमें दलित और महादलित के रूप में बांटा था. उसी तर्ज पर केंद्र सरकार ने भी कदम बढ़ाया है.