नई दिल्ली
इन्फोसिस के मुखिया के तौर पर नंदन नीलेकणि के वापसी की संभावना बढ़ गई है। देश की इस दूसरी सबसे बड़ी आइटी कंपनी के पूर्व सीएफओ वी बालाकृष्णन ने नंदन के नाम की पुरजोर पैरवी की है। उन्होंने कहा है कि मौजूदा सूरतेहाल में अनुभव व ग्राहकों की समझ के चलते नीलेकणि संगठन का नेतृत्व करने के लिए सबसे बेहतर चेहरा साबित होंगे। बालाकृष्णन की बात इसलिए भी अहम है, क्योंकि उन्हें इन्फोसिस के सह-संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति का कट्टर समर्थक माना जाता है। यही नहीं, आइसीआइसीआइ, एचडीएफसी और रिलायंस जैसे कई बड़े फंड भी नंदन के समर्थन में आ गए हैं।
खास बात यह है कि नीलेकणि भी इन्फोसिस के सह-संस्थापक हैं। वह मूर्ति के साथ उन छह लोगों में शामिल थे, जिन्होंने मिलकर वर्ष 1981 में यह आइटी कंपनी बनाई थी। नंदन भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआइएडीआइ) का पहला चेयरमैन बनने से पहले कंपनी के एमडी व सीईओ थे। अब एक बार फिर से वह कंपनी के मुखिया बन सकते हैं। इस बार उनकी वापसी गैर-कार्यकारी चेयरमैन के रूप में होने की संभावना है। उन्हें इस पद पर लाए जाने का सबसे पहले समर्थन निवेशक सलाहकार फर्म आइआइएएस ने बीते शुक्रवार को किया था। उसी दिन सिक्का ने इस्तीफा दिया था। बालाकृष्णन की मानें तो नीलेकणि चेयरमैन पद के लिए सबसे बेहतर साबित होंगे, क्योंकि अपने पिछले कार्यकाल के दौरान कंपनी में उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा था। पूर्व सीएफओ के अलावा संस्थागत निवेशकों का प्रतिनिधित्व करने वाले फंड मैनेजरों ने भी नंदन को लाने का सुझाव दिया है। इस संबंध में आइसीआइसीआइ प्रूडेंशियल एएमसी, आइसीआइसीआइ प्रूडेंशियल लाइफ, एचडीएफसी म्यूचुअल फंड, एचडीएफसी लाइफ, रिलायंस निप्पन लाइफ एएमसी, एसबीआइ म्यूचुअल फंड और एसबीआइ लाइफ इंश्योरेंस के फंड मैनेजरों ने संयुक्त रूप से चिट्ठी लिखी है।
इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में बिरला सनलाइफ एएमसी, फ्रैंकलिन टेंपलटन, डीएसपी ब्लैकरॉक इन्वेस्टमेंट समेत कई अन्य फंड मैनेजर शामिल हैं। खास बात यह है इस साल जून के अंत में इन्फोसिस में म्यूचुअल फंडों की हिस्सेदारी 8.95 फीसद और बीमा कंपनियों की 11.05 फीसद है। कंपनी में इन दोनों की हिस्सेदारी करीब 20 फीसद बैठती है। इसके अलावा संस्थापकों की इक्विटी हिस्सेदारी भी लगभग 12 फीसद है।
संस्थापकों के साथ विवाद में इन्फोसिस के सीईओ एवं एमडी विशाल सिक्का के बीते हफ्ते अचानक इस्तीफा देने के बाद से कंपनी में शीर्ष पद के लिए कयास लगाए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि निदेशक बोर्ड के एक्जीक्यूटिव चेयरमैन आर शेषसायी और को-चेयरमैन रवि वेंकटेशन का कंपनी के संस्थापकों के साथ 36 के आंकड़े को देखते हुए उनकी भी विदाई हो सकती है। बालाकृष्णन बीते सोमवार को ही मांग उठाई थी कि इन्फोसिस के बोर्ड का पुनर्गठन किया जाए। इससे पहले इन दोनों को अपने पद से हट जाना चाहिए।
इन्फोसिस के पूर्व सीएफओ बालाकृष्णन की मानें तो नीलेकणि कंपनी के चेयरमैन के तौर पर सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं। उनकेपिछले कार्यकाल में कंपनी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था। इतना ही नहीं कंपनी में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले फंड भी नंदन को जिम्मेदारी दिये जाने का समर्थन कर रहे हैं। इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायणमूर्ति की कंपनी के बड़े निवेशकों के साथ बहुप्रतीक्षित बातचीत उनके बीमार होने के चलते टल गई है। यह बातचीत बुधवार को प्रस्तावित थी। अब वह ग्लोबल निवेशकों के साथ कांफ्रेंस कॉल के जरिये 29 अगस्त को बात करेंगे। इस दौरान मूर्ति कंपनी में कॉरपोरेट गवर्नेस और अन्य मुद्दों को लेकर निवेशकों को आश्वस्त करेंगे।
नया मोड़: नए CEO और MD की तलाश से पहले होंगे और इस्तीफे
विशाल सिक्का के इस्तीफे के बाद भी देश की बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनी इंफोसिस में विवाद रुकने का नाम नहीं ले रहा है. एक तरफ जहां इंफोसिस बोर्ड कंपनी के लिए नए सीईओ और एमडी की तलाश कर रहा है वहीं बोर्ड के कुछ सदस्यों ने इस्तीफा देने का पेशकश की है. एक अंग्रेजी टीवी चैनल ने दावा किया है कि बोर्ड के सदस्यों को छोड़कर सभी अन्य ने बोर्ड से इस्तीफा देने की पेशकश की है. यह पेशकश इसलिए की गई है जिससे कंपनी के नए सीईओ और एमडी के तौर पर नंदन निलेकणि का इंफोसिस में नई पारी शुरू करने का रास्ता साफ हो सके.
सूत्रों के मुताबिक नंदन निलेकणि ने इस शर्त पर इंफोसिस की कमान संभालने पर रजामंदी दी है कि उन्हें कंपनी की कमान क्लीन स्लेट दी जाए जिससे नए मैनेजमेंट के सामने पुराने विवाद न आएं. निलेकणि का मानना है कि कंपनी को तेज रफ्तार देने के लिए जरूरी है कि एक बार फिर कंपनी में इंवेस्टर का रुझान मजबूत हो और कर्मचारियों के लिए कंपनी का माहौल बेहतर रहे. गौरतलब है कि नंदन निलेकनी ने 2009 में इंफोसिस को छोड़कर केन्द्र में मनमोहन सिंह सरकार की आधार योजना शुरू करने के लिए यूआईडीएआई के चेयरमैन की कमान संभाल ली थी. 2009 में इंफोसिस छोड़ते वक्त निलेकणि ने कहा था कि वह वापस इंफोसिस का रुख नहीं करेंगें. लेकिन बीते कुछ महीनों से इंफोसिस में जारी संघर्ष और विशाल सिक्का के इस्तीफे के बाद कंपनी के को चेयरमैन और इंडिपेंडेंट डायरेक्टर्स ने निलेकणि से एक बार फिर कमान संभालने का दबाव बनाया. नंदन निलेकणि की वापसी का मतलब है इंफोसिस बोर्ड का नए सिरे से पुनर्गठन किया जाएगा. सूत्रों का मानना है कि नए बोर्ड में जिन सदस्यों को जगह न बना पाने की उम्मीद है वह बोर्ड से इस्तीफा दे सकते हैं.