पांच राज्योमे चुनाव संपन्न हुए। नतीजें ११ दिसम्बर को आयेंगे। नतीजा जो भी हो लेकिन सत्ता के लिए विभिन्न दलों द्वारा कैसे कैसे सियासती रंग दिखाए जाते है या नतीजें आने के बाद कैसे रंग बदलेंगे जीते हुए जन प्रतिनिधि ये खेला भी देखने को मिले उससे पहले प.बंगाल में राजनितिक रथयात्रा को लेकर सत्ताधारी दल टीएमसी की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी और भाजपा के बीच जो चल रहा है उसमे लोकतांत्रिक तरीका किसे कहते है उसका मौजूदा उदाहरण भी देखने को मिलता है। भाजपा के शीर्ष नेता अमित शाह जिस राज्य से है उस गुजरात में एक पाटीदार युवक हार्दिक पटेल ने समाज की कुछ मांगो को लेकर अनशन की मंजूरी मांगी और फिर उसे किस तरह पुलिस प्रशासन द्वारा परेशान किया गया ये सबकुछ कोई बीते बरसो की बात नहीं। इस युवक ने लोकतांत्रिक तरीके से ही अनशन की मंजूरी चाहीथी। जिस तरह हार्दिक ने भाजपा सरकार से लोकतांत्रिक तरीके से अनशन की जो गुहार लगाईं थी वैसी ही गुहार अमितजी ममता बैनर्जी की सरकार से कर रहे है।
भाजपा अध्यक्ष ममता सरकार को अपने तरीके से बदलना चाहती है। इस राज्य की जनता बदलाव चाहती है य राज्य की देश की जनता ने ये तय कर लिया है….ऐसा अपने मन से और जनता को बीना पूंछे कहने की मानो एक राजनितिक फैशन हो गई है। बंगाल की जनता को ममता की सरकार पसंद नहीं तो चुनाव में उसे वोट नहीं देंगी। बंगाल से ऐसी कोई बड़ी खबर भी नहीं की वहा बहोत बड़ा जन आन्दोलन ममता सरकार के खिलाफ चल रहा हो। भाजपा ने चुनाव को देखते हुए वहाँ रथयात्रा का अपना पुराना सियासी दावं अजमाना शुरू किया। बड़े पैमाने पर रथयात्रा सरकार के खिलाफ निकालना और कानून व्यवस्था के सवाल को देखते हुए वहा की सरकार ने इसकी परमीशन नहीं देना उतना ही ठीक समझा जितना गुजरात में भाजपा की सरकार ने हार्दिक पटेल नामक युवक को परमीशन नहीं देना ठीक समझा था। जैसे भाजपा सरकार के इस निर्णय को भाजपाई नेतागण सही मानते है वैसे ही ममता सरकार का निर्णय भी सही मानना चाहिए। क्योंकि आखिर क़ानून व्यवस्था राज्य का विषय है। मगर उसे सियासी नजरो से देखने की सभी नेतागण की आदत सी हो गई है।
सरकार या अदालत मंजूरी न दे तो भी हम “लोकतांत्रिक” तरीके से रथयात्रा निकालेंगे ये कहना कितना सही है ये तो जगजाहिर है। वैसी ही जिद यदि राम मंदिर के लिए की होती भाजपा ने तो कब का भव्य और दिव्य मंदिर बन गया होता। लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने का बुनियादी अधिकार है। लेकिन कानून व्यवस्था को लेकर अपने राज्य के लिए अलग नितिरिती और प्रतिपक्ष की सरकार हो तो अलग राजनितिक रवैया अपनाना ये सियासत के अलावा ओर कुछ नहीं। ये सभी जानते है की बंगाल और केरल में भाजपा अपना झंडा गाड़ना चाहते है और राजनितिक दल को ये करना भी चाहिए लेकिन उसके लिए किसी राज्य की कानून व्यवस्था को बिगाड़कर नहीं। फिर वह शख्सियत चाहे कोई युवक हार्दिक पटेल हो या अमित शाह या उद्धव ठाकरे हो। जिद अच्छी नहीं सेहत पर असर पड़ती है।