वैसे तो भारत के संविधान में हमें अपने विचारो कि अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता का अधिकार मीला हुआ है। मगर ईस अधिकार को लेकर आज भी हम साफ नही कर पाए कि किस तरह के विचार को अभीव्यक्त किया जा सकता है और किस तरह के विचारो को अभीव्यक्त नही किया जा सकता। संविधान के भाग 3 में विचारो कि अभीव्यक्ति के अधिकार कि कोई व्याख्या नही दी गई है।
विचारो कि कोई सीमा नही होती। अच्छे विचार भी होते है और बुरे विचार भी होते है। परंतु यह तय कौन करेंगा कि अच्छे विचार किसे कहते है और बुरे किसे? हमारे एक नेता अभी अभी संसद में अपना हिन्दु देवी देवताओ पर अपना ज्ञान दे रहे थे। एक सांसद ने दिन्दु देवी देवताओ कि तुलना शराब से कि। फिर उन्होने माफि भी मांग ली। मगर क्यां यह उचित है कि विचारो कि अभीव्यक्ति के नाम पर किसी का भी अपमान किया जाए? लोकशाही के प्रतिक समान सांसद में गाली गलोच, मारा- मारी, गुंडा गर्दी भी होती है। यह सब विचारो कि अभीव्यक्ति के अधिकार के नाम पर होता है। एक नेता ने श्याम रंग कि महिलाओ के बारे में अनुचित बयान दिया। तो कोई सुंदर दिखनेवाली महिलाओ को परकतरी महिलाए कहते है। हमारे भारत के प्रधानमंत्री भी ईससे अछुते नही है। उन्होने भी एक वरिष्ठ नेता के बाथरूम में रेईन कोट पहनकर नहाने के बारे में बयान दिया था। यह सब बाते संसद में होती है। और यह सब विचारो कि अभीव्यक्ति के नाम पर होती है।
हमारे यहा चुनाव प्रचार में भी कई विशेषता होती है। कुछ शब्द विचारो कि अभीव्यक्ति के नाम पर कहे जाते है। जैसे कि चाय वाला, पप्पु, फेंकु, रेम्बो, बच्चा, फर्जी डिग्री वाला, ईत्यादि। 2014 के चुनाव प्रचार में टोफि वाले बाबा, इटालियन मैडम, मौनी बाबा, जैसे शब्दो कि भरमार थी। हिन्दु देवी देवताओ कि तुलना कभी कभी हमारे भ्रष्टाचारी नेताओ के साथ भी कि जाती है। तो कभी कभी हरएक आदमी शरमा जाए एसी गाली गलोच भी होती है।
लगता है शालिनता ईस जमाने में मर चुकी है। बोलीवुड फिल्मो में भी अब स्वतंत्रता के नाम पर अभद्र द्रश्य दिखाए जाते है। बेशरमी कि हद तो तब आती है जब नंगे द्रश्यो पर सेन्सर कि कैंची चलती है तो आंदोलन करते है लोग। लोग कहते है हमारे अधिकारो का हनन होता है। कोर्ट में न्याय मांगने चले जाते है। स्त्री कि नग्नता दर्शाना एक अधिकार बन गया है। फिल्मो में भी गाली गलोच, शराब-शबाब-कबाब, गरमा गरम द्रश्य दिखाए जाते है। और ईसे लोग विचारो कि अभीव्यक्ति कि स्वतंत्रता समजते है।
क्यां हमारे पास आज कोई विचारो कि अभीव्यक्ति कि स्वातंत्रता कि कोई व्याख्या है? क्या हम आज शालिनता कि व्याख्या बना सकते है? किसी को मारना, कपडे फाडना, श्याहि फेकना, कालिप पोतना, घर पर पथ्थर फेंकना जैसी चीजे आजकी राजनीति का एक हिस्सा बन चुकि है। क्यां ईसे शालिनता कहते है? कोई नेता को काले जंडे दिखाना, थप्पड मारना, जुते मारना क्या यह आजकि राजनीति है? और कितना गीरेंगे हम? क्यां आज कोई एसा नेता है जो हमें शालिनता सीखा सके?