नई दिल्ली एक 8 साल के बच्चे को खेलते वक्त करंट लग जाता है। वह बेहोश हो जाता है। जब वह होश में आता है, तो पाता है कि डॉक्टर उसकी जान बचाने के लिए उसका एक हाथ काट चुके हैं। उस बच्चे की जिंदगी रातोंरात बदल जाती है। डॉक्टर बच्चे के मां-बाप को कहते हैं कि आपका बच्चा अब सामान्य जिंदगी नहीं जी पाएगा। वह और बच्चों की तरह खेलकूद नहीं पाएगा और उसकी सेहत भी अच्छी नहीं रहेगी।
लेकिन वह बच्चा सारी बातों को झुठलाते हुए अपने साहस और मेहनत के दम पर 28 साल बाद देश के सबसे बड़े खेल पुरस्कार ‘खेल रत्न’ का हकदार बन जाता है। यह कहानी है दो बार के पैरालिंपिक्स गोल्ड मेडलिस्ट पैराऐथलिट देवेंद्र झाझरिया की, जिनकी उपलब्धियों को आज हर कोई जानता है, लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने जो ‘असामान्य मेहनत’ की उस पर पर्दा ही पड़ा रहा।
देवेंद्र बताते हैं, ‘हाथ कटने के बाद लंबे समय तक मैं सदमे में ही था। गांव में लोग तरह-तरह के ताने भी मारते और जब वह यह कहकर अफसोस जताते कि बेचारा अब कुछ भी नहीं कर पाएगा, तो मुझे और भी ज्यादा तकलीफ होती। मुझसे ज्यादा मेरी मां को सुनने को मिलता। मेरी मां ने मेरे लिए बहुत दुख झेले। कहीं मुझे किसी चीज की जरूरत न पड़ जाए इसलिए वह हमेशा मेरे साथ साये की माफिक रहती थी।’
7 भाई-बहन में सबसे छोटे देवेंद्र ने अपनी सफलता का सारा श्रेय अपनी मां को देते हुए कहा, ‘मैंने घर से बाहर निकलकर और बच्चों के साथ खेलना छोड़ दिया था। एक दिन मेरी मां खुद मुझे बाहर लेकर गई और मुझे और बच्चों के साथ खेलने को कहा। वह मेरी मां का साहस था, जो मैं उस दिन घर से बाहर निकला और दोबारा से खेलने की हिम्मत जुटा पाया। आज जो भी सम्मान मुझे मिलता है वह दरअसल मुझे नहीं बल्कि मेरी मां के साहस को मिलता है।’