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‘‘मैं चर्खा नहीं चलाऊंगा’’

अहमदाबाद में गांधीजी के साबरमती आश्रम में कल एक ऐसा काम हो गया, जो देश में शायद पहले कभी नहीं हुआ। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक लंबी परंपरा को मानने से इंकार कर दिया। उस आश्रम में जो भी विशिष्ट व्यक्ति जाता है, वह महात्मा गांधी की मूर्ति को सूत की माला पहनाता है और हाथ जोड़कर नमन करता है। बाद में वह वहां बैठकर चर्खे  पर सूत कातता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति के साथ वहां चर्खा चलाया था और उसके फोटो सारे देश में देखे गए थे। राष्ट्रपति कोविंद ने गांधीजी की मूर्ति को माला पहनाई और नमन भी किया। उन्होंने गांधीजी की महानता को साबरमती आश्रम की आगंतुक पुस्तिका में बहुत प्रभावशाली शब्दों में रेखांकित किया है। लेकिन चर्खा चलाने से इंकार कर दिया। उनका तर्क था कि चर्खा चलाने का अधिकार उसे ही है, जो नियमित खादी पहने। क्या अदभुत बात है ! जो लोग दस-दस लाख के सूट पहनते हैं, वे चर्खे पर सूत कातते हुए अपने फोटो छपाने में ज़रा भी संकोच नहीं करते। उनकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर होता है। उनके फोटो और उनका असली जीवन एक-जैसा हो, उसे वे जरुरी नहीं समझते। स्वच्छता अभियान के तहत वे फोटो खूब खिंचवाते हैं लेकिन वे अपने चड्डी-बनियान तक नहीं धोते। जिस बिस्तर पर सोते हैं, उसे साफ तक नहीं करते। कोविंदजी ने अपने नेताओं की इस भेड़-चाल को बदलने का संदेश दिया है। गांधीजी दुनिया के सारे नेताओं में सबसे अलग क्यों थे ? क्योंकि वे जो कहते थे, पहले उसे करते थे। कोविंदजी ने चर्खा नहीं चलाया, इसे लेकर देश में विवाद भी छिड़ सकता है। लोग पूछ सकते हैं कि क्या कोविंद मोदी से बड़े राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य हैं ? यदि मोदी चर्खा चला सकते हैं तो कोविंद क्यों नहीं चला सकते हैं ? उन्होंने चलाने से मना करके चर्खे का अपमान तो नहीं कर दिया है ? पहली बात तो यह कि कोविंद अब राष्ट्रपति हैं। वे किसी प्रधानमंत्री की तरह अब किसी राजनीतिक दल या संगठन के सदस्य नहीं हैं। इसके अलावा हम यह न भूलें कि जनसंघ और भाजपा के साथ जाने के बहुत पहले वे कट्टर गांधीवादी मोरारजी देसाई के साथ काम करते थे। उन्होंने चर्खा चलाने का नाटक नहीं करके चर्खे का अपमान नहीं किया है बल्कि चर्खे और खादी का सम्मान बढ़ाया है। वे अब खादी ही पहनें और चर्खा चलाएं तो लाखों खादी कार्यकर्ताओं को काफी प्रोत्साहन मिलेगा। सिर्फ खादी ही नहीं, हिंदी, शाकाहार, सदाचार और दक्षिण एशियाई महासंघ (आर्यावर्त्त) जैसे मुद्दे पर भी कोविंदजी अपना प्रेरणादायक विचार पेश करें तो वे राष्ट्रपति के साथ-साथ राष्ट्रनायक की भूमिका भी निभाएंगे।

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