चरम पर भ्रष्टाचार : स्वच्छ भारत की बुनियाद महज दो इंच पर टिकी!

उत्तर प्रदेश और देश से यदि ऐसी ख़बरें आनी शुरू हो जाएं कि शौच करते हुए शौचालय की दीवार गिरने से महिला, पुरुष या किसी बच्चे की मौत हो गयी तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि स्वच्छ भारत की दीवार का जो निर्माण हो रहा है उसकी बुनियाद महज दो इंच पर टिकी हुई है। शौचालयों की दीवार घटिया निर्माण सामग्री और घोटाले की परकाष्ठा पर टिकी हुई हैं। यही नहीं शौचालय के दरवाजे का वजन 3-4 किलोग्राम के आसपास है, जो हल्के जस्ते का बना हुआ है। शौचालय निर्माण के इस पूरे भ्रष्टाचार में ग्रामप्रधान से लेकर तहसील और जिले के संबंधित अधिकारी सीधे तौर पर शामिल हैं जिनकी जांच करने वाला कोई नहीं है।

केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के तहत पूरे देश को खुले में शौच मुक्त करने का एक बड़ा अभियान चलाया जा रहा है। जिसके अंतर्गत सरकार एक परिवार की शौचालय के निर्माण के लिए 12 हजार रूपए दे रही है। इस बारह हजार रूपए में परिवार या तो खुद शौचालय का निर्माण करवाके ग्राम प्रधान के जरिए पैसे का दावा पेश करे। या फिर ग्राम प्रधान द्वारा जो शौचालय बनवाया जा रहा है उसे स्वीकार कर ले। इसमें अधिकांश ग्रामीण ग्राम प्रधान द्वारा बनाए जा रहे शौचालय को ही स्वीकार कर रहे हैं। क्योंकि ज्यादातर ग्रामीण खुद शौचालय के निर्माण से पैसे की तंगी की बात कहके दूर हट रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि एक तो पैसा नहीं है फिर जोड़तोड़ करके शौचालय बनवा भी लिए तो पता नहीं सरकार की तरफ से कब दावा किया गया पैसा मिले इसे कोई नहीं जानता।

शौचालयों के कमरे का निर्माण चार बाई चार फीट के चार इंच मोटी ईंट के दीवार से की जा रही है। शौचालय की उंचाई लगभग साढ़े छह फिट बनाया जा रहा है।  उत्तर प्रदेश के गांवों में बन रहे कई शौचालयों का निरीक्षण किया। उ.प्र. के प्रतापगढ़ जिले के लालगंज ओझारा तहशील के पूरे तिलक और माधोपुरा गांवो में बन रहे शौचालयों के दीवार चिल्ला चिल्लाकर भ्रष्टाचार की गवाही दे रहे थे। यह इलाका कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रमोद तिवारी का है। यहां का ग्राम प्रधान अंगूठा छाप अनूसूचित जाति का है। गांव वालों ने बताया कि वर्तमान प्रधान यहां के पूर्व प्रधान चंद्रमूल शुक्ला के इशारे पर काम करता है। इस गांव में जो चंद्रमूल शुक्ला का चापलूसी करता है उन्हीं की बातें सुनी जाती है। चंद्रमूल शुक्ला लगभग तीन दशक से ज्यादा समय तक इस गांव की प्रधानी कर चुका है।

चंद्रमूल शुक्ला प्रमोद तिवारी का खास आदमी बताया जाता है। यहां के ज्यादातर शौचालयों में पाया गया कि ईंट बेहद घटिया किस्म की लगायी गयी है। ईंट की जुड़ाई के लिए जो मशाला तैयार किया जा रहा है उसमें घटिया किस्म की बालू और सीमेंट का इस्तेमाल हो रहा है। कई गांव वालों ने बताया कि इसमें मशाला एक और ग्यारह का लगाया जा रहा है। जो सीमेंट और बालू का बेहद घटिया अनुपात है। घटिया निर्माण सामग्री की वजह से कई शौचालयों की दीवार बनाते-बनाते गिर गयी। कई तैयार शौचालय निर्माण के दूसरे दिन ही जरा सी बारिश और तेज हवा की वजह से ढह गए।

इसी तरह से प्रतापगढ़ जिले के ही पट्टी तहसील के तहत आने वाले रामपुर बेला गांव, औराईन, बरहूपुर, महदहां गांव की कहानी है। पट्टी तहसील के साथ-साथ विधानसभा क्षेत्र भी है। यह विधानसभा क्षेत्र भाजपा के राजेंद्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह का है। जो क्षेत्र के दिग्गज नेता कहे जाते हैं। मोती सिंह उ.प्र. सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। उनके पास ग्रामीण अभियंत्रण विभाग है। यहां भी शौचालयों का हाल बेहद बुरा है। यहां बन रहे शौचालयों की नींव महज दो इंच गहरी है। जिसकी नींव दो-तीन इंच गहरी होगी वह शौचालय कितना टिकाऊ होगा। रामपुर बेला का ग्राम प्रधान बिशंभर सरोज है।

शौचालयों के नींव और गुणवत्ता के मापदंड के बारे में जब ग्राम प्रधान से बात की गयी तो बिशंभर सरोज बोला कि जो बन जा रहा है उसी में लोग खुश रहें। ज्यादा की उम्मीद न करें। जब पूछा गया नींव की गहराई का मापदंड क्या है तो किसी के पास कोई जवाब नहीं था। ये तो महज सिर्फ दो तहसील के गांवों की कहानी है। सरकारी अभियान के तहत प्रदेश और देश में बन रहे यदि शौचालयों के निर्माण की जांच कराई जाए तो दूध का दूध पानी का पानी साफ हो जाएगा। सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के तहत बन रहे इन शौचालयों की बेहद घटिया निर्माण सामग्री, शौचालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार से साफ हो चुका है कि संबंधित अधिकारी और गांवों के ग्राम प्रधान न तो मोदी से डरते हैं न तो योगी से डर रहे हैं। हां आम आदमी बेहद घटिया निर्माण सामग्री से बन रहे इन शौचालयों में जाने से जरूर डरेगा।

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