अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी की कुछ घंटों की यह भारत-यात्रा बहुत सार्थक रही। यह यात्रा बहुत संक्षिप्त थी लेकिन एक तो यह तब हुई जबकि अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन काबुल और इस्लामाबाद में दोनों देशों के नेताओं से बात कर चुके थे और तीसरे देश, भारत के नेताओं से बात करने दिल्ली आए हुए हैं। टिलरसन से पहले ही गनी दिल्ली पहुंचे और उन्होंने भारतीय नेताओं से विचार-विमर्श किया, इसका फायदा उन्हें यह मिलेगा कि वे अपनी जो बात टिलरसन से नहीं कह सकें होंगे या नहीं मनवा सके होंगे, वह वे भारत के जरिए मनवाने की कोशिश करेंगे। इसके अलावा भारत पहुंचकर उन्हें कई बड़ी खरी-खरी बातें कह दी है। जैसे, पहली यह कि यदि काबुल और दिल्ली के रास्ते में पाकिस्तान अडंगा लगाएगा तो वह अफगानिस्तान चीन के ओबोर (चीनी महापथ) में सहायता नहीं करेगा। यदि अफगानिस्तान उसका बहिष्कार कर देगा तो चीन की खरबों रु. की यह वृहद योजना धराशायी हो जाएगी, क्योंकि यूरोप जानेवाले सभी रास्ते अफगानिस्तान होकर ही जाते हैं। दूसरे शब्दों में चीन-पाक सहयोग निरर्थक हो जाएगा। यदि ओबोर की सड़क पाकिस्तान पहुंचकर खत्म हो जाती है तो उसे बनाने में चीन पैसा क्यों लगाएगा ? दूसरे शब्दों में अब भारत—अफगान व्यापार के लिए पाकिस्तानी रास्ता खोलने के लिए अफगानिस्तान ने चीन पर तगड़ा दबाव खड़ा कर दिया है। उसने कमाल की कूटनीति की है। उसने अंगद का पांव अड़ा दिया है। राष्ट्रपति गनी ने पाकिस्तान की उस पहल को भी रद्द कर दिया है, जिसे वह रुस, चीन और ईरान की मदद से तालिबान के साथ कर रहा है। गनी ने कहा है कि ऐसे मामलों में जो भी पहल होगी, उसका आरंभ और नेतृत्व अफगानिस्तान करेगा। गनी ने भारत द्वारा अफगानिस्तान को दी जा रही 3.1 बिलियन डाॅलर की सहायता के लिए आभार व्यक्त किया और कहा कि भारत और अफगानिस्तान के बीच कोई गुप्त और रहस्यमय सैन्य-सौदा नहीं हुआ है। भारत ने अफगानिस्तान को चार हेलिकाॅप्टर दिए हैं और उसकी पुलिस और फौज के जवानों को प्रशिक्षण दिया है। अब ईरान के चाहबहार बंदरगाह के खुल जाने से पाकिस्तानी रास्ते की अहमियत भी खत्म हो रही है। अब पाकिस्तान में से जाए बिना ही भारतीय माल ईरान के जरिए अफगानिस्तान पहुंच जाएगा। गनी की इस भारत-यात्रा से अब अमेरिका, भारत और अफगानिस्तान के बीच सहयोग का त्रिभुज तैयार हो गया-सा लगता है। टिलरसन उस पर मुहर लगा देंगे।