नई दिल्ली भारत और चीन के बीच डोकलाम मु्द्दे को लेकर सीमा पर बढ़ते तनाव को देखते हुए दोनों ही देशों के बीच तलवारें तनी हुई हैं. एक तरफ चीन पीछे हटने को तैयार नहीं है वहीं भारत भी अपने रुख पर कायम है. माहौल ऐसा है कि कभी भी युद्ध हो सकता है. ऐसे में यदि युद्ध की ये स्थिति चीन के तिब्बत में बनी तो भारतीय वायुसेना चीनी लड़ाकू विमानों को पटखनी दे सकती है. ऐसा माना जा रहा है कि भारतीय वायुसेना के विमान चीन की PLAAF (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स) पर कहीं ज्यादा भारी पड़ेंगे.
जानकारों की मानें तो यदि भारत और चीन के बीच तिब्बत में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है तो इस युद्ध स्थल में ऐसी कई परिस्थितियां हैं जो भारत के पक्ष में जाएंगी. इसका खुलासा भारतीय वायुसेना के पूर्व स्क्वाड्रन लीडर समीर जोशी ने अपने एक दस्तावेज में किया है जो जल्द ही प्रकाशित होने जा रहा है. पिछले कुछ समय से सिक्किम के डोकलाम क्षेत्र में भारत और चीन के बीच जारी गतिरोध के बीच आकाश में शक्ति संतुलन के आकलन के लिहाज से यह अपनी तरह का समग्र रूप से पहला भारतीय दस्तावेज है.
इंडियन डिफेंस अपडेट वेबसाइट में छपी खबर के मुताबिक इस दस्तावेज का नाम ‘The Dragon’s Claws: Assessing China’s PLAAF Today’ है. जिसमें पूर्व स्क्वाड्रन लीडर जोशी ने भारतीय वायुसेना और चीनी वायुसेना का तिब्बत की परिस्थिति में विश्लेषण किया है. जल्दी ही प्रकाशित होने जा रहे दस्तावेज के मुताबिक तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में ऑपरेशन के लिहाज से भारतीय एयरफोर्स को चीन की तुलना में बढ़त हासिल है. आपको बता दें कि भारत और चीन के बीच स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के उत्तर में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र पड़ता है.
भारतीय वायुसेना के श्रेष्ठ लड़ाकू विमानों में से एक मिराज 2000 के फाइटर पायलट रहे हैं जोशी ने इसके पीछे भौगोलिक कारण दिए है. उन्होंने लिखा है कि भारतीय एयरफोर्स के लड़ाकू विमान, चीनी लड़ाकू विमानों को पटखनी देने में प्रभावी रूप से सक्षम हैं. जोशी ने इसकी मुख्य वजह ये बताई है कि चीन के मुख्य एयरबेस बेहद ऊंचाई पर है वहीं दूसरी तरफ तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में आने वाले चीनी एयरक्राफ्ट को बेहद विपरीत जलवायु दशाओं का भी सामना करना पड़ता है. जिसके चलते चीनी एयरक्राफ्ट की प्रभावी पेलोड और सैन्य अभियान की क्षमता में काफी कमी आ जाती है. यानी तिब्बत के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में वायु का लघु घनत्व चीनी लड़ाकू विमानों मसलन su-27, J-11 अथवा J-10 की क्षमता को कमजोर कर देता है.
वहीं भारतीय वायुसेना की बात करें तो इंडियन एयरफोर्स उत्तर-पूर्व में स्थित 4 एयरबेस (तेजपुर, कलाईकुंडा, छाबुआ और हाशीमारा) से ऑपरेट करती हैं. इन चारों एयरबेस की ऊंचाई मैदानी इलाकों की समुद्र तल से ऊंचाई के करीब है. मतलब भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में भौगोलिक परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए काफी भीतर तक ऑपरेशन करने में सक्षम हैं. जबकि चीनी लड़ाकू विमानों को तिब्बत की ऊंचाई वाले क्षेत्रों से उड़ान भरनी पड़ेगी जो उनके अनुकूल नहीं होगी और उनकी मारक क्षमता कम हो जाएगी.
स्क्वाड्रन लीडर समीर जोशी के मुताबिक, ‘क्षेत्र, टेक्नोलॉजी और ट्रेनिंग के लिहाज से तिब्बत और दक्षिणी जिनजियांग में भारतीय वायुसेना को PLAAF(पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स) पर निश्चित रूप से बढ़त हासिल है. यह संख्याबल के लिहाज से PLAAF की बढ़त को कम से कम आने वाले कुछ सालों तक रोकने में सक्षम है