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महराजगंज जनपद मे अफसरों के दावे फेल…सूखीं नहरे, खेत प्यासे


रतन गुप्ता उप संपादक

दिसंबर माह बीत रहा है, लेकिन अभी तक नहरों में पानी नहीं छोड़ा जा सका है। पहली सिंचाई के लिए पानी न मिलने से किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है। किसान प्रति एकड़ करीब दो हजार रुपये खर्च कर अपने खेतों की सिंचाई कर रहे हैं। नहर का पानी न मिलने से फसलों के उत्पादन पर भी असर पड़ने की संभावना है।
जनपद का निचलौल तहसील क्षेत्र सिंचाई परियोजना के लिए काफी अहम माना जाता है। नारायणी नदी से निकलने वाली देवरिया मुख्य शाखा नहर के माध्यम से मधुबनी व वसूली नहर शाखा और उसकी सहायक नहरें निकाली गई हैं। बारिश के बाद नहरों और माइनरों की साफ कराई जाती है। दिसंबर के पहले सप्ताह में नहरों में पानी छोड़ दिया जाता है, लेकिन इस बार अभी तक पानी नहीं छोड़ा गया है।

इससे किसानों की परेशानी बढ़ गई है। वह पंपिंग सेट से सिंचाई करने को मजबूर हैं। एक एकड़ जमीन में करीब दो हजार रुपये खर्च हो रहे हैं। इसके बाद भी फसलों की पैदावार पर संकट मंडरा रहा है। वहीं लागत भी बढ़ रही है।

सिंचाई खंड प्रथम के अधिशासी अभियंता वीके वर्मा ने कहा कि नहरों की सिल्ट सफाई और मरम्मत लगभग पूरा हो चुका है। उम्मीद है कि जिले के सभी शाखा नहर में 26 दिसंबर तक पानी छोड़ दिया जाएगा। इससे किसानों को सिंचाई संबंधी परेशानी नहीं आएगी।


35 हजार किसानों के लिए नहरें ही सिंचाई का जरिया
जिले में हजारों किसान ऐसे भी हैं जिन्हें फसलों में सिंचाई के लिए सिर्फ नहरों का सहारा है। खोन्हौली, रायपुर, सिधावे, जयश्री, अरदौना, हरदी, जमुई, बरोहिया, खरचौली, हरखोड़ा, सेमरहना, बरगदही आदि गांवों में करीब 35 हजार से ज्यादा किसान सिंचाई के लिए सिर्फ नहरों पर ही निर्भर हैं।


नहरें व माइनरें बंद होने से खराब हो रहीं फसल
खोन्हौली गांव के रहने वाले सुबास कसौधन ने कहा कि नहरें व माइनरें बंद होने से फसलें खराब हो रही हैं। डीजल से सिंचाई करने में करीब दो हजार रुपये तक प्रति एकड़ खर्च झेलना पड़ रहा है। वहीं जयश्री गांव निवासी श्यामानंद शुक्ला ने कहा कि किसानों को सुविधा देने के दावे किए जाते हैं। लेकिन सिंचाई के लिए कभी भी समय से पानी नहीं मिलता। निजी खर्च से फसलों की सिंचाई करने के लिए मजबूर हैं।

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