आपरेशन क्लीन मनी का तीसरा चरण लागू करने में भले ही मोदी सरकार ने देर कर दी लेकिन अगर 2019 में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार आई तो इतना तय माना जाए कि पूरे देश में अरबों खरबों रूपये की बेनामी संपतियाॅ सरकार की होगी। प्रदेश की राजधानी, महानगरों में प्लाट, भवन, आपर्टमेन्ट और तराई क्षेत्रों में छदम नामों से खरीदे गए फर्म हाऊसों पर केन्द्र सरकार की लम्बे अरसे से नजर है। सरकार के लाख प्रयासों के बावजूद अधिकारियेां एवं कर्मचारियों द्वारा अपनी सम्पत्ति का सुस्पष्ट ब्यौरा न देने तथा कमाऊ विभागों के चपरासी से लेकर बाबू तक के यहाॅ छापामारी के दौरान मिलने वाली अकूत सम्पत्ति को देखकर ही केन्द्र सरकार ने सबसे पहले आपरेशन क्लीन मनी के तहत सबसे पहले नोटबंदी फिर आयकर विभाग को लगाकर बेनामी सम्पत्ति कि खिलाफ कड़ी कार्रवाई शुरू कराई थीं। अब केन्द्र सरकार ने सम्पति की फर्जी खरीद और बिक्री का कानून लागू किया है। हालांकि इस कानून को लागू करने देर हुई है। भले ही सरकार इसे अचल संपति की खरीद फरोख्त में फर्जीवाड़े को रोकने का दावा कर रही हो लेकिन वास्तविकता यह है कि इस कानून लागू होने के बाद छदम नामों से खड़ी और पड़ी सम्पत्ति सामने आ जाएगी। जमीन और मकान सहित अन्य अचल संपत्ति की खरीद फरोख्त तथा पंजीकरण में फर्जीवाड़े को रोकने के लिए केंद्र सरकार संपत्ति की मिल्कियत के पुख्ता निर्धारण से संबंधित कानून बनाएगी। इसमें संपत्ति पंजीकरण प्राधिकरण गठित करने का भी प्रावधान होगा।केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मामलों के मंत्रालय ने इसके लिए भूमि स्वामित्व (लैंड टाइटिल) अधिनियम बनाने की प्रक्रिया शुरू की है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि संपत्ति संबंधी फर्जीवाड़े को रोकने के लिए जमीन की मिल्कियत के राष्ट्रीय स्तर पर जुटाए गए आंकड़ों को समेकित कर इस समस्या से निपटा जा सकता है। उन्होंने कहा, भूमि स्वामित्व अधिनियम का प्रारूप मंत्रालय द्वारा तय कर इसे संसद से पारित कराने की प्रक्रिया को जल्द पूरा किया जा रहा है। केंद्रीय कानून बनने के बाद अन्य राज्य इसे अपनी जरूरत के मुताबिक लागू कर सकेंगे। .
आवास एवं शहरी विकास मामलों के राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी के मुताबिक दिल्ली सहित देश के अन्य इलाकों में संपत्ति की खरीद-फरोख्त में होने वाले फर्जीवाड़े की समस्या से निपटने के लिए कानून बनाया जाएगा। कानून का मकसद देश में प्रत्येक भूखंड का एक विशिष्ट पंजीकरण नंबर निर्धारित कर इन आंकड़ों का डिजिटलीकरण करना है। हालांकि इस तरह का कानून 2008 में दिल्ली सरकार ने लैंड टाइटिल विधेयक के नाम से लागू किया था। दिल्ली सरकार ने ही 2010 में दिल्ली शहरी क्षेत्र अंचल सम्पत्ति पंजीकरण विधेयक पारित कर केन्द को भेजा था। इसे 2013 में गृह मंत्रालय भारत सरकार ने नामंजूर कर दिया। सरकार के इस निर्णय से लाखों की संख्या में लम्बित फर्जी सम्पत्ति मामलों कमी आएगी। आयकर विभाग ने कई शहरों में बेनामी संपत्ति मालिकों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर चुका है। इन लोगों ने अवैध तरीके से हासिल कमाई किसी और के नाम पर रखी है। 300 से अधिक मामलों में बेनामी लेनदेन (रोकथाम) कानून के तहत कार्रवाई की शुरूआत हो चुकी है।। कानून के तहत अवैध संपत्ति रखने वाले व्यक्ति और उसके असली मालिक की संपत्ति जब्त की जा सकती है और मुकदमा चलाया जा सकता है। अक्टूबर 18 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक बैठक में आयकर विभाग को ‘‘ ऑपरेशन क्लीन मनी ‘‘ के दौरान पकड़ में आए बेनामी संपत्ति मालिकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए थे। इसके बाद ही विभाग ने यह कदम उठाया है। प्रधानमंत्री के निर्देश के बाद केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने दिल्ली, अहमदाबाद, पुणे, कोलकाता, हैदराबाद और चेन्नई सहित 16 क्षेत्रों में 30 विशेष दलों का गठन किया । प्रत्येक दल में 4 आयकर अधिकारी होंगे, जिनकी अगुआई संबंधित क्षेत्र के अतिरिक्त आयुक्त करेंगे।‘‘ ऑपरेशन क्लीन मनी ‘‘ के दूसरे चरण में ऐसे 1,300 लोग पहचाने गए थे। जिनका जमीन-जायदाद में भारी निवेश उनके आयकर रिटर्न और वैध कमाई से मेल नहीं खाता। उनकी संपत्ति की कुल कीमत 6,000 करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान है। सीबीडीटी के एक वरिष्ठड्ढ अधिकारी के मुताबिक इनमें से 35-40 फीसदी लोग बेनामी लेनदेन में शामिल हैं। उन्होंने कहा, श्ऐसे सैकड़ों मामले हैं, जहां कर्मचारी ट्रस्ट के नाम पर खाते खोले गए हैं, चपरासी और ड्राइवर के नाम पर जमीन या फ्लैट खरीदे गए हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय और राजस्व विभाग ने सीबीडीटी से कड़ी कार्रवाई करने और उसकी रिपोर्ट देने को कहा है। बेनामी संपत्ति मालिकों में अधिकांश सरकारी कर्मचारी, दुकानदार, चिकित्सा अधिकारी, वकील और उद्यमी शामिल हैं। हालांकि बेनामी सम्पत्ति के तहत उठाये गए केन्द्र सरकार के कदम से 30 जून 2018 तक 1,600 बेनामी लेनदेन की जब्ती की गई है, जिनका मूल्य 4,300 करोड़ रुपये से अधिक है। गौरतलब है कि बेनामी कानून 2016 के बाद इस तरह की संपत्तियों की जब्ती में तेजी आई है।बेनामी संपत्ति रखने वाले अफसरों की अब खैर नहीं है।देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही मुहिम में एक नई गति देखने को मिली है. देश की ब्यूरोक्रेसी में अचानक आए इस बदलाव के कई मायने निकाले जा रहे हैं। देश की तमाम जांच एजेंसियां एक से बढ़ कर एक घोटालों का पर्दाफाश कर रही हैं। हर रोज अखबारों के पन्ने भ्रष्टाचारियों के कारगुजारियों से रंगे रहते हैं। मोदी सरकार देश की ब्यूरोक्रेसी में व्याप्त भ्रष्टाचार पर विशेष नजर रख रही है। देश में भ्रष्ट अधिकारियों और उनकी बेनामी संपत्तियों पर इस तरह की कार्रवाई पूर्व की सरकारों के समय कम ही देखने को मिलती थीं। .देश में नए बेनामी कानून में अधिकतम सात साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। देश में 8 नवंबर को नोटबंदी के बाद से सीबीडीटी ने देश में चल और अचल, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपत्तियों की खोजबीन शुरू की थी। ये संपत्ति वास्तविक ऑनर के बजाए किसी और के नाम पर दर्ज हैं। नए कानून में इस तरह की संपत्तियों को बेनामी करार दिया गया है। बेनामी सौदों को रोकने के लिए बनाया गया कानून 1 नवबंर से प्रभाव में आ चुका है। नए सख्त कानूनों के बाद से लोग प्रॉपर्टी जब्त होने से बचाने के लिए लॉ फर्म्स का सहारा लेने की सोच रहे हैं लेकिन जांच के डर से वह वकीलों से सीधे बात भी नहीं कर रहे हैं। सरकार ने अगस्त 2016 में बेनामी सौदा निषेध कानून को पारित किया था। इसके प्रभाव में आने के बाद मौजूदा बेनामी सौदे (निषेध) कानून 1988 का नाम बदलकर बेनामी संपत्ति कानून 1988 कर दिया गया है। संशोधनों के बाद सरकार को यह अधिकार है कि वह टैक्स से बचने के लिए दूसरे के नाम से खरीदी गई प्रॉपर्टी को जब्त कर सकती है। लोग वकीलों से इस बारे में पूछताछ कर रहे हैं लेकिन जांच से बचने के लिए वह दोस्तों या अन्य लोगों के नाम का सहारा ले रहे हैं।जैसा नाम से समझ आता है बेनामी का अर्थ ऐसी संपत्ति है जो असली खरीददार के नाम पर नहीं है। टैक्स से बचने और संपत्ति का ब्यौरा न देने के उद्देश्य से लोग अपने नाम से प्रॉपर्टी नहीं खरीदते। जिस व्यक्ति के नाम से यह खरीदी जाती है उसे बेनामदार कहते हैं और संपत्ति बेनामी कहलाती है। बेनामी संपत्ति चल या अचल दोनों हो सकती है। अधिकतर ऐसे लोग बेनामी संपत्ति खरीदते हैं जिनकी आमदनी का स्रोत संपत्ति से ज्यादा होता है। प्राविधान के तहत पकड़े जाने पर अधिकतम सात साल की सजा और प्रॉपर्टी की मार्केट वैल्यू के 25 प्रतिशत तक जुर्माना होगा। जानबूझकर गलत जानकारी देने पर कम से कम छह महीने की सजा होगी और अधिकतम पांच साल की सजा और संपत्ति के बाजार मूल्य का 10 फीसदी तक का जुर्माना देना होगा। कुल मिलाकर एक बहुत बड़ा काम जो मोदी सरकार को शुरूआत में करना चाहिए था वह अब करने जा रही है।