रतन गुप्ता उप सम्पादक
भारत में हजारों की संख्या में मदरसे संचालित हैं. जिसमें लाखों की तादाद में मुस्लिम समुदाय के बच्चे तालीम हासिल करते हैं———–
इस्लाम में मदरसों की बड़ी अहमियत होती है क्योंकि मदरसों में इस्लामी शिक्षा दी जाती है. मदरसों द्वारा दी गई तालीम के जरिए इस्लाम को जानने में मदद मिलती है. भारत में हजारों की संख्या में मदरसे संचालित हैं. जिसमें लाखों की तादाद में मुस्लिम समुदाय के बच्चे तालीम हासिल करते हैं. लेकिन क्या मदरसे में सिर्फ लड़के ही पढ़ सकते हैं? लड़कियां नहीं पढ़ सकती… तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि मदरसों मे लड़कियां भी पढ़ सकती हैं या नहीं.
मदरसा संचालक मसूद आलम नूरी बताते हैं कि भारत में बहुत से ऐसे मदरसे हैं जिनमें लड़कियों को बहुत इज्जत के साथ तालीम दी जाती है. हां इस्लाम में पर्दे की बड़ी अहमियत होती है. इसलिए ऐसे कई मदरसे हैं जिनमें लड़कियों के लिए अलग बिल्डिंग हैं और उनको पढ़ाने के लिए फीमेल टीचर्स भी मौजूद होती हैं. उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता है.
क्या है मदरसे के प्रति लोगों की गलतफहमी?
मसूद आलम नूरी ने कहा कि अगर लड़कियों की उम्र की बात की जाए तो मदरसों में तालीम हासिल करने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती. लड़कियां जब चाहे मदरसे की पढ़ाई पढ़ सकती हैं .शादीशुदा महिलाएं भी मदरसे की तालीम हासिल कर सकती हैं. इस्लाम धर्म में जब आप चाहे तब तालीम हासिल कर सकते हैं इसके लिए कोई प्रतिबंध नहीं है.
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मदरसों की शिक्षा कितनी उपयोगी?
मदरसा संचालक बताते हैं कि बहुत से लोगों की यह गलतफहमियां है कि इस्लाम में लड़कियों को पढ़ने नहीं दिया जाता मैं उनको बता दूं कि इस्लाम का जो कांसेप्ट है उसमें तालीम बहुत जरूरी है. इस्लाम में मर्द हो या औरत उन दोनों को तालीम हासिल करने की पूरी आजादी है और कोई भी तालीम हासिल कर सकता हैं. सिर्फ मदरसे की तालीम की बात नहीं किसी भी तालीम को हासिल करने की इजाजत इस्लाम धर्म देता है. आज भी बहुत सी महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने अपनी शुरुआत मदरसे की तालीम से की थी लेकिन आज वह डॉक्टर, उच्च अधिकारी व किसी बड़ी पोस्ट पर है जो अपनी इज्जत की जिंदगी बसर कर रही है ।