एशियाई विचारों और दर्शन को एक मंच पर लाया जाए- राज्यपाल

लखनऊ,। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने वैश्विक परिदृश्य में एशिया के बढ़ते हुए महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस महत्व के चलते आज यह जरूरी हो गया है कि एशियाई देश अपने पूर्वजों द्वारा व्यवहृत वैश्विक शांति तथा पर्यावरणीय संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए अपनी गुरूतर जिम्मेदारियों का विवेकपूर्ण ढंग से निर्वहन करें। इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए जरूरी है कि एशियाई विचारों और दर्शन को एक मंच पर लाया जाए तथा उनकी साझी आध्यात्मिक विरासत को बढ़ावा दिया जाए। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में यह आवश्यक है कि महात्मा बुद्ध के आधारभूत संदेश कि अपना प्रकाश स्वयं बनो तथा उपनिषद का विचार कि तत्व और आत्मा सर्वोच्च चेतना से भिन्न नहीं है, दोनों को ही आत्मसात करते हुए उन पर अमल किया जाए। श्री नाईक आज म्यांमार की राजधानी यंगून में विवेकानन्द इण्टरनेशनल फाउण्डेशन नई दिल्ली, सितगू इण्टरनेशनल बुद्धिस्ट अकादमी, म्यांमार इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्टरनेशनल एण्ड स्ट्रैटिजिक स्टडीज तथा जापान फाउण्डेशन के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित दो दिवसीय संवाद सम्मेलन के प्रथम दिन का उद्घाटन करने के बाद उसे सम्बोधित कर रहे थे। सम्मेलन  संवाद में संघर्ष की स्थिति को टालना तथा पर्यावरणीय चेतना विषय पर भारत, म्यांमार, जापान सहित अन्य देशों के राजनेताओं, विद्वानों एवं धर्म गुरूओं द्वारा विमर्श किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि इस पूर्व  संवाद दो दिवसीय सम्मेलन 3 एवं 4 सितम्बर 2015 को नई दिल्ली में आयोजित हुआ था जिसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था। भारत और म्यांमार की साझी आध्यात्मिक विरासत पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल ने कहा कि वर्तमान समय में भारत और म्यांमार के मध्य प्राचीन समय से चले आ रहे अमिट संबंधों को और अधिक मजबूत बनाने के लिए व्यापक प्रयास किए गए हैं और उनके बेहतर नतीजे सामने आए हैं। विश्व शांति और पर्यावरणीय चेतना के संदर्भ में भारत और म्यांमार के ताकिर्क विचारों की समृद्धिता तथा औचित्य का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि न्याय तथा विवेक पर आधारित तक.वितर्क की जनतांत्रिक प्रक्रिया से ही पारस्परिक समझ एवं सम्मान से परिपूर्ण स्वीकार्यता तथा सहमति की भावना को सकारात्मक बल मिलता है और इसी के फलस्वरूप समाज के विकास और विविधता को सहज रूप से स्वीकार कर सांस्कृतिक आधार तैयार होता है।उन्होने कहा कि हमारी भारतीय परम्परा पर्यावरणीय दृष्टिकोण से मेल खाती हैं। आज जब पूरा विश्व स्वच्छ पर्यावरण हासिल करने के लिए उपायों को ढूंढने के कार्य से जूझ रहा हैए ऐसे समय में पर्यावरणीय चेतना को पुष्पित.पल्लवित करने की दिशा में प्राचीन समय से चली आ रही परम्पराओं पर आधारित हमारे समन्वयात्मक तौर.तरीके अत्यधिक परिणामपरक और कालजयी साबित हो सकते हैं। इससे पूर्व सितगू इण्टरनेशनल बुद्धिस्ट अकादमी में  संवाद सम्मेलन में विख्यात बौद्ध विद्वान सितगू सेदाव डॉ0 एशिन ननिसार ने स्वागत उद्बोधन दिया। अपने उद्बोधन में डॉ0 एशिन ननिसार ने सम्मेलन में आये सभी अतिथियों का अभिभावन करते हुए दूसरे धर्मों का सम्मान करने को श्रेष्ठ परम्परा बताया। उन्होंने कि सभी धर्मों की शिक्षाओं में एक.दूसरे का सम्मान का भाव समाहित है।सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे की रिकार्डेड सम्बोधनों को भी प्रस्तुत किया गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सम्मेलन संवाद की प्रशंसा करते हुए कहा कि आपसी संघर्ष एवं मतभेदों को कैसे दूर किया जा सकता है तथा हम प्रेम और सौहाद्र्र से किस प्रकार रह सकते हैं, हमें इन प्रश्नों के जवाब तलाशने होंगे। भारतीय प्राचीन परम्परा आपसी मतभेदों को दूर करने के लिए तकर्शास्त्र एवं संवाद में विश्वास करती है। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में हो रहे वैश्विक परिवर्तनों का हल भी बातचीत से ही निकलेगा। इस अवसर पर श्री नाईक ने सम्मेलन में भाग ले रहे विख्यात बौद्ध विद्वान सितगू सेदाव डॉ0 एशिन ननिसार सहित अनेक देशों के राजनेताओंए महानुभावोंए विद्वानों तथा विभिन्न धर्मों के आध्यात्मिक गुरूओं का अभिवादन तथा उनके प्रति अपना हार्दिक आभार व्यक्त किया। राज्यपाल राम नाईक को बौद्ध विद्वान सितगू सेदाव डॉ0 एशिन ननिसार ने अपनी एक पुस्तक भी भेंट की। सम्मेलन में भारत से पधारे स्वामी अवधेशानन्द जी सहित प्रमुख धर्माचार्यों ने भी अपने विचार रखे।

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