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स्कूलों में योग पढ़वाने की जिम्मेवारी सरकार की है कोर्ट की नहीं!

सर्वोच्च न्यायलय ने मंगलवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें राष्ट्रीय योग नीति बनाने और देशभर में पहली से आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए योग अनिवार्य करने की मांग की गई थी। न्यायाधीश एम. बी. लोकुर की अगुआई वाली पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि ऐसे मुद्दे पर सरकार फैसला कर सकती है। पीठ ने कहा, ‘हम यह कहने वाले कोई नहीं हैं कि स्कूलों में क्या पढ़ाया जाना चाहिए। यह हमारा काम नहीं है। हम कैसे इस पर निर्देश दे सकते हैं।’

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 29 नवंबर को केंद्र से कहा था कि वह याचिका को एक अभिवेदन की तरह ले और इस पर फैसला करे। याचिका में कहा गया था, ‘राज्य का यह कर्तव्य है कि वह सभी नागरिकों खासतौर से बच्चों और किशोरों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराए।

कल्याणकारी राज्य में यह राज्य का कर्तव्य होता है कि वह अच्छे स्वास्थ्य के अनुकूल परिस्थितियों को बनाए रखना सुनिश्चित करें।’ इसमें कहा गया था कि सभी बच्चों को ‘योग और स्वास्थ्य शिक्षा’ दिए बिना या योग का प्रचार-प्रसार करने के लिए ‘राष्ट्रीय योग नीति’ तय किए बिना स्वास्थ्य के अधिकार को सुरक्षित नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसके लिए ऐसी राहत देना संभव नहीं है जो याचिका दायर करने वाले वकील और दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय और जे. सी. सेठ ने मांगी है। कोर्ट ने कहा, ‘स्कूलों में क्या पढ़ाया जाना चाहिए यह मौलिक अधिकार नहीं है।

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