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भारत ने नाकेबंदी नहीं की, इसीलिए मधेशी लोग अपने अधिकारों से बंचित रह गयेःराजेन्द्र महतो

रतन गुप्ता उप संपादक
नेपाल के राष्ट्रीय मुक्ति अभियान के संयोजक राजेन्द्र महतो ने दावा किया है कि मधेस आन्दोलन इसलिए विफल हुआ क्योंकि भारत ने कड़ी नाकेबंदी नहीं की थी । उनका मानना है कि नेपाल में हुए जितने भी महत्वपूर्ण राजनीतिक आन्दोलन हुये है, उसमें भारत की सहभागिता और सहयोग रहा है, लेकिन मधेश आन्दोलन में भारत ने सहयोग नहीं किया । बुधबार को अपनी पुस्तक ‘अधूरा क्रांति’ विमोचन के अवसर पर बोलते हुए महतो ने कहा– ‘भारत ने कड़ी नाकेबंदी नहीं की, इसीलिए मधेशी जनता अपने अधिकारों से बंचित रह गए ।’ महतो ने कहा कि अगर भारत ने संविधान लागू करने के बाद सख्त नाकेबंदी किया होता तो मधेस आंदोलन विफल नहीं होता ।
संयोजक महतो का मनना है कि मधेश आन्दोलन लाखों मधेशी जनता ने की थी, उसमें भारतीय सहयोग अपेक्षित थी, लेकिन भारत ने उसमें कोई सहयोग नहीं किया । उन्होंने यह भी कहा कि सीमा क्षेत्र अवरोध के दौरान उतनी ही मात्रा में आयात किया गया था, जितना हमेशा किया जाता रहा था । महतो ने आगे कहा– ‘उस वक्त की राष्ट्र बैंक की रिपोर्ट भी यही कहती है । बीरगंज के अलावा अन्य सीमा खुली थी । नाकाबंदी इसलिए हुई क्योंकि बीरगंज चौकी पर हजारों मधेसी लोग मौजूद थे और इसे बुलडोजर से हटाने की स्थिति नहीं थी । इसीलिए माल का आयात नहीं किया गया । किन्तु अन्य चौकियों से गैस आदि वस्तुएं आयात हो रहे थे ।’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर भारत ने नाकाबंदी की थी, तो ये सामान कैसे नेपाल आया ? भारत ने कैसे लगाई नाकेबंदी ? नाकाबंदी, नाकाबंदी ! हम भी परेशान, भारत भी परेशान ! अगर भारत ने प्रतिबंध लगाया होता तो ऐसा होता ?’
महतो ने यह भी कहा कि भारत ने सुगौली संधि के मुताबिक काम नहीं किया है । उन्होंने कहा– ‘२०६४ फागुन १४ गते में जब दूसरा मधेस आंदोलन हुआ तो भारत की मध्यस्थता से ८ बिंदुओं पर सहमति बनी । समझौते के अनुसार संविधान सभा का चुनाव हुआ, लेकिन भारत ने मधेसियों की मांगों को पूरा करने के लिए संविधान का मसौदा तैयार करने की पहल नहीं की ।’
महतो ने कहा कि सुगौली संधि में कुछ भूमि का आदान–प्रदान करके सीमा का निर्धारण किया गया । बांके बर्दिया, कैलाली कंचनपुर को नये जिला के रूप में नेपाल को सौंप दिया गया । सुगौली संधि की धारा में तत्कालीन ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के बीच यह सहमति बनी थी कि यहां के लोगों के साथ किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा । लेकिन इसे समझौते के मुताबिक नहीं निपटाया गया । उन्होंने कहा– ‘१४ फागुन २०६४ को दूसरे मधेस आंदोलन में भारत की मध्यस्थता से ८ सूत्री समझौता हुआ । उस समय नेपाल सरकार के अनुरोध पर भारत सरकार ने मध्यस्थता की थी । उस समय के समझौते के अनुसार संविधान नहीं बनने के बाद हम किसे कहेंगे ? भारत को इसे पूरा करना चाहिए था !’
संयोजक महतो ने यह भी कहा कि नेपाल राष्ट्र के निर्माणकर्ता पृथ्वीनारायण शाह ने नेपालको चार जात छत्तिस वर्ण के साझा फूलबारी कहा है, लेकिन उसके बाद जितने भी शासक आए हैं, उन्होंने उक्त कथन अनुसार व्यवहार नहीं किया । उन्होंने कहा कि नेपाल में जितने भी राजनीतिक आन्दोलन और क्रान्ति हुई है, उससे उत्पीडित जनता को न्याय नहीं मिल पाया है । उन्होंने कहा– ‘आज भी मधेशी और जनजाति समूह अधिकार से बंचित हैं, कोई भी राजनीतिक आन्दोलन उन लोगों को न्याय नहीं दिला सका ।’
नेता महतो को मानना है कि एकल जातिवादी चिन्तन के कारण ही ऐसी परिस्थिति आई है । उनका मानना है कि देश आज भी राजनीतिक क्रान्ति बांकी है । उन्होंने आगे कहा– ‘राजनीतिक क्रान्ति पुरा किये बिना आर्थिक क्रान्ति सम्भव नहीं है । राजनीतिक क्रान्ति के जरिए अधिकार से बंचित उत्पीडित समूह को न्याय दिलाना होगा, उसके बाद ही आर्थिक क्रान्ति सम्भव है । उन्होंने कहा कि अब आर्थिक दृष्टिकोण से संकट में है, रेमिट्यान्स आना बंद हो जाता है तो नेपाल असफल राष्ट्र घोषित हो सकता है ।

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