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अब गोपाल गांधी क्या करें ?

 
उप-राष्ट्रपति के चुनाव में मुप्पावरपु वैंकय्या नायडू की विजय पहले से ही सुनिश्चित थी लेकिन उन्हें उनके गणित से 21 वोट ज्यादा मिले और गोपाल गांधी को भी कांग्रेस की राष्ट्रपति की उम्मीदवार मीरा कुमार के मुकाबले 19 वोट ज्यादा मिले। ऐसा क्यों हुआ और उसकी जोड़-तोड़ में हम न जाएं तो भी एक बात साफ है कि पिछले एक माह में ही भाजपा का समर्थन बढ़ा है जबकि कांग्रेस का समर्थन घटा है। कांग्रेस-गठबंधन के कई सांसदों ने भाजपा के उम्मीदवार वैंकय्या को वोट दिया है। यद्यपि वैंकय्या को भाजपा के राष्ट्रपति के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के मुकाबले कम वोट मिले हैं लेकिन कांग्रेसी उम्मीदवार गोपाल गांधी को मीरा कुमार के मुकाबले ज्यादा वोट मिलने का मतलब क्या है ? यही कि गोपाल गांधी का सम्मान बहुत ज्यादा है। सांसदगण ने अपने वोट गोपालजी को उनकी योग्यता और स्वच्छ व्यक्तित्व के कारण दिए हैं। उन्होंने पार्टी-अनुशासन को नीचे और अपने अंतःकरण को उपर रखा है। दुखद यही है कि गोपाल गांधी-जैसे श्रेष्ठ बौद्धिक कांग्रेस के उम्मीदवार बन गए। यह ठीक है कि कई विरोधी दलों ने उनका दिल खोलकर समर्थन किया और भाजपा गठबंधन में शामिल होने के बावजूद नीतीश के जनता दल ने भी उन्हें वोट दिया लेकिन असली प्रश्न यह मन में उठता है कि गोपाल गांधी क्यों ‘सोनिया गांधी कांग्रेस’ के उम्मीदवार बन गए ? यह ठीक है कि उसी ने उन्हें प. बंगाल का राज्यपाल बनाया था लेकिन जिन मूल्यों को वे बहुत प्यार करते हैं, क्या उनकी रक्षा यह मां-बेटा पार्टी कर सकी है ? गोपाल गांधी चाहें तो आज भी देश में किसी राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति से बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। वे यह क्यों भूलते हैं कि उनके नाम के साथ महात्मा गांधी का नाम जुड़ा हुआ है। गांधीजी तो कभी सांसद या मंत्री या प्रधानमंत्री नहीं बने और न ही उन्होंने बनने की इच्छा की। आज देश में सच्चे नेतृत्व का अभाव है। देश दिशाहीन हो चुका है। हमारी राजनीति अंधेरी सुरंग बन चुकी है। सारी पार्टियां नोट और वोट या पत्ता और सत्ता के खेल में मगन हैं। अकल की जगह नकल का बोलबाला है। इस कठिन समय में यदि गोपाल भाई जैसे कुछ गैर-राजनीतिक लोग आगे आएं तो देश को नई दिशा मिल सकती है। वे इन पार्टियों और नेताओं का मोह छोड़ें। सीधे जनता से जुड़ें तो 2019 तक यह देश इस अंधेरी सुरंग के बाहर निकल सकता है।

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