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नोटबंदी की नेगेटिव इफेक्ट? वित्त वर्ष की पहली तिमाही में GDP गिरकर 5.7 पर पहुंची

नई दिल्ली

आर्थिक विकास के मोर्चे पर एक खराब खबर है। वित्त वर्ष 2018 की पहली तिमाही में आर्थिक विकास दर में गिरावट आई है। नोटबंदी के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा है. देश की जीडीपी (ग्रोस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट) ग्रोथ इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 5.7 पर्सेंट पर आ गई है। यह इसका तीन साल का निचला स्तर है। विनिर्माण गतिविधियों में सुस्ती के बीच लगातार तीसरी तिमाही में नोटबंदी का असर दिखाई दिया। इससे पिछली तिमाही (जनवरी मार्च ) में जीडीपी की वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत रही थी। 2016-17 की पहली तिमाही की संशोधित वृद्धि दर 7.9 प्रतिशत थी। ये आंकड़े सेंट्रल स्टेटिस्टिक्स ऑफिसर (CSO) द्वारा गुरुवार को जारी किए गए। एक दिन पहले ही नोटबंदी को लेकर आरबीआई की ओर से जारी आंकड़ों पर घिरी सरकार के लिए अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार पर बचाव करना मुश्किल होगा। केंद्र सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल से जून तिमाही में जीडी पी की विकास दर धीमी हो गई है. पिछली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 6.1 फीसदी थी. इससे पिछले साल जीडीपी की रफ्तार 7.9 फीसदी थी. सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल से जून तिमाही में जीडीपी की विकास दर धीमी हो गई है.

जीडीपी में गिरावट की मुख्य वजह मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में आई बड़ी गिरावट रही। जून तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ 1.2 फीसद रही है, जो बीते साल इसी तिमाही में 10.7 फीसद थी। इसके अलावा कृषि क्षेत्र की विकास दर में भी हल्की गिरावट देखने को मिली है। जून तिमाही में कृषि क्षेत्र की विकास दर मामूली गिरावट के साथ 2.3 फीसद पर रही है। जो बीते साल इसी तिमाही में 2.5 फीसद पर थी। मैन्युफैक्चरिंग में आई गिरावट की बदौलत इंडस्ट्री सेक्टर की ग्रोथ 7.4 फीसद से गिरकर जून तिमाही में महज 1.6 फीसद रह गई है। वहीं वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कंस्ट्रक्शन गतिविधियां  भी सुस्त पड़ती नजर आई हैं। जून तिमाही कंस्ट्रक्शन सेक्टर की ग्रोथ रेट 2 फीसद पर रही है, जो इससे पिछले साल की इसी तिमाही में 3.1 फीसद के स्तर पर थी। वहीं जीडीपी में सबसे ज्यादा भागीदारी रखने वाले सेवा क्षेत्र की विकास दर जून तिमाही में 8.7 फीसद रही है, जो बीते साल समान तिमाही में 9 फीसद की दर से बढ़ रहा था।

इसमें पिछली तिमाही के मुकाबले 0.4 फीसदी की कमी आई है. पिछली तिमाही (जनवरी-मार्च) में नोटबंदी के प्रभाव की वजह से जीडीपी 6.1 पर्सेंट पर थी। उम्मीद की जा रही थी इस गिरावट की भरपाई अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कर ली जाएगी। लेकिन सीएसओ की तरफ से जारी आंकड़ों को देखकर लगता है कि अर्थव्यवस्था न सिर्फ नोटबंदी की मार से उबर पाई है, बल्कि इसका असर नए टैक्स सिस्टम पर भी पड़ा है। जानकारों का मानना है कि 1 जुलाई को लॉन्च हुए नए टैक्स सिस्टम जीएसटी (गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स) से पहले चल रही कन्फ्यूजन की स्थिति के कारण जीडीपी डेटा में गिरावट देखी गई है। जीडीपी विकास दर के आंकड़े ऐसे समय में आए हैं, जब आरबीआई की नोटबंदी को लेकर जारी रिपोर्ट पर हंगामा हो रहा है. विपक्षी दलों का आरोप है कि नोटबंदी से जीडीपी को कोई ज्‍यादा फायदा नहीं हुआ है. ऐसे में देखना होगा कि सरकार जीडीपी की विकास दर धीमी होने के लिए क्‍या वजह बताती है? जीडीपी के जून के आंकड़ों ने रॉयटर्स पोल के अनुमान को भी झूठा साबित कर दिया है. 40 अर्थशास्त्रियों के इस पोल में उम्‍मीद जताई गई थी कि भारत की जीडीपी 6.6 फीसदी की दर से आगे बढ़ेगी. रॉयटर ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि जीएसटी की वजह से कंफ्यूजन बरकरार है. ऐसे में इसका सीधा असर जीडीपी पर पड़ सकता है.

जीडीपी के अलावा जीवीए (ग्रॉस वैल्यु एडेड) की ग्रोथ रेट में भी भारी गिरावट देखने को मिली है। जून तिमाही में जीपीए की ग्रोथ रेट 5.6 फीसद रही है जो बीते साल 7.6 फीसद रही थी। आपको बता दें कि जीवीए देश में उत्पादित होने वाली सभी सेवाओं और वस्तुओं का मूल्य होता है।

ऑयल प्रोड्यूसिंग ब्‍लॉक OPEC ने उम्‍मीद जताई है कि जुलाई से दिसंबर के बीच जीडीपी की विकास दर में सुधार आएगा. OPEC ने जुलाई में जारी अपनी मासिक रिपोर्ट में यह अनुमान जताया है. रिपोर्ट के मुताबिक विकास दर धीमी होने के पीछे नोटबंदी सबसे बड़ा फैक्‍टर है. इसमें कहा गया है कि नोटबंदी का असर कुछ समय के लिए ही रहेगा. साल के दूसरी छमाही में जीडीपी की स्थिति सुधर जाएगी और विकास दर में सुधार आएगा.

ऐसे में भारत का सबसे तेजी बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बने रहने का सपना थोड़ा दूर हो गया है। जनवरी-मार्च की तिमाही में, चीन की 6.9 पर्सेंट जीडीपी ग्रोथ से पिछड़ने के बाद भारत को सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था नहीं कहा जा सकता है। अनंत के मुताबित वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग समेत सभी सेक्टर्स में रिकवरी देखने को मिलेगी। अनंत के मुताबिक जीवीए में गिरावट को नोटबंदी से जोड़ना सही नहीं है। अनंत ने कहा कि यदि आप 2015-16 के वित्त वर्ष पर गौर करें तो आप देखेंगे कि उस समय जीवीए में उछाल की प्रमुख वजह थोक महंगाई का नकारात्मक हो जाना रहा था।

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